मुसाफिर क्यों पड़ा सोता
भरोसा है न एक पल का
दमादम बज रहा डंका
तमाशा है चला चल का !
सुबह जो तख्शाही पर
बड़े सज धज के बैठे थे
दुपहरे वक़्त में उनका
हुआ है बास जंगल का !
कहाँ है राम और लक्ष्मण
कहाँ रावन से बलधारी
कहाँ हनुमान से योद्धा
पता जिनके न था बल का !
उन्होको काल ने खाया
तुझे भी काल खायेगा
सफ़र सामान बढा न तू
बना ले बोझ को हल्का !
जरा सी जिन्दगी पर
तू न इतना मान कर मुरख
यह जीवन चंद दिन का है
कि जैसे बुदबुदा जल का !
नसीहत मान ले मेरी
उम्र पल पल में कम होती
जो करना आज ही कर ले
भरोसा कुछ न कर कल का !!
भरोसा है न एक पल का
दमादम बज रहा डंका
तमाशा है चला चल का !
सुबह जो तख्शाही पर
बड़े सज धज के बैठे थे
दुपहरे वक़्त में उनका
हुआ है बास जंगल का !
कहाँ है राम और लक्ष्मण
कहाँ रावन से बलधारी
कहाँ हनुमान से योद्धा
पता जिनके न था बल का !
उन्होको काल ने खाया
तुझे भी काल खायेगा
सफ़र सामान बढा न तू
बना ले बोझ को हल्का !
जरा सी जिन्दगी पर
तू न इतना मान कर मुरख
यह जीवन चंद दिन का है
कि जैसे बुदबुदा जल का !
नसीहत मान ले मेरी
उम्र पल पल में कम होती
जो करना आज ही कर ले
भरोसा कुछ न कर कल का !!